संस्कृत श्लोक में इसके बारे में यह कहा गया है कि ‘अतति सततं गच्छाति इति अतसी’ अर्थात् मीठे गुणों को धारण करने वाले इस पौधे को अतसी कहते हैं । क्योंकि इसके फूल नीले होते हैं इसलिये इसे नील पुष्पी भी कहा जाता है । यह भारत का आदिवासी पौधा है ।
इसके फूल पार्वती जी को पसन्द थे । इसलिये उसे उमा पुष्पी भी कहा जाता है । पुष्पकाल-फरवरी, मार्च | फलकाल-जून, जुलाई । प्रयोज्य अंग-बीज, बीज़ चूर्ण 3 से 6 ग्राम ।
लाभ
- पके हुए व्रणभेदन के लिये इसको कूटकर लेप करने से काफी लाभ होता है ।
- वातप्रधान व्रण में वेदना तथा कष्ट होने पर इसका तेल लगाने से लाभ होता है ।
- इसका प्रयोग पेचिश रोकने के लिये भी किया जाता है ।
- अलसी के तेल तथा चूने के पानी से तैयार किया हुआ मलहम जले हुये स्थान पर लगाने से जलन ठीक होता है । गन्धक के साथ यह तेल त्वचा विकार में उपयोगी है ।
- वायु के दर्द से मुक्ति पाने के लिये अलसी का तेल लगाने से आराम होता है ।